Monday 28 January 2013

                                       संथ निळे हे पाणी 


संथ निळे हे पाणी
वर शुक्राचा तारा
कुरळ्या लहंरीमधुनी
शिळ घालतो वारा

दुर कमान पुलाची
एकलीच अंधारी
थरथरत्या पाण्याला
कसले गुपीत विचारी

भरुन काजव्याने हा
चमके पिंपळ सारा
स्तिमीत होऊनी तेथे
अवचित थबके वारा
किरकीर रात किड्यांची
निरवतेस किनारी
ओढ लागुनी छाया
थरथरते अंधारी
मध्येच क्षितीजावरुनी
विज लकाकुन जाई
अन ध्यानस्थ गिरी ही
उघडुनी लोचन पाही
हळुच चांदने ओले
थिबके पाणावरुनी
कसला क्षन सोनेरी
उमले प्राणामधुनी

संथ निळे हे पाणी
वर शुक्राचा तारा
दरवळला गंधाने
मओनाचा गाभारा
                                                   - मंगेश पाडगांवकर

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